एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो?
इस डेढ़ छँटाक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो।
क्या रक्खा है माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो।
संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो।"
हम बोले, "रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो।
इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो।
आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।
आराम सुधा की एक बूंद, तन का दुबलापन खोती है।
आराम शब्द में 'राम' छिपा जो भव-बंधन को खोता है।
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है।
इसलिए तुम्हें समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो।
ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर, आराम करो, आराम करो।
यदि करना ही कुछ पड़ जाए तो अधिक न तुम उत्पात करो।
अपने घर में बैठे-बैठे बस लंबी-लंबी बात करो।
करने-धरने में क्या रक्खा जो रक्खा बात बनाने में।
जो ओठ हिलाने में रस है, वह कभी न हाथ हिलाने में।
तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ -- है मज़ा मूर्ख कहलाने में।
जीवन-जागृति में क्या रक्खा जो रक्खा है सो जाने में।
मैं यही सोचकर पास अक्ल के, कम ही जाया करता हूँ।
जो बुद्धिमान जन होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ।
दीए जलने के पहले ही घर में आ जाया करता हूँ।
जो मिलता है, खा लेता हूँ, चुपके सो जाया करता हूँ।
मेरी गीता में लिखा हुआ -- सच्चे योगी जो होते हैं,
वे कम-से-कम बारह घंटे तो बेफ़िक्री से सोते हैं।
अदवायन खिंची खाट में जो पड़ते ही आनंद आता है।
वह सात स्वर्ग, अपवर्ग, मोक्ष से भी ऊँचा उठ जाता है।
जब 'सुख की नींद' कढ़ा तकिया, इस सर के नीचे आता है,
तो सच कहता हूँ इस सर में, इंजन जैसा लग जाता है।
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ, बुद्धि भी फक-फक करती है।
भावों का रश हो जाता है, कविता सब उमड़ी पड़ती है।
मैं औरों की तो नहीं, बात पहले अपनी ही लेता हूँ।
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊँटों की उपमा देता हूँ।
मैं खटरागी हूँ मुझको तो खटिया में गीत फूटते हैं।
छत की कड़ियाँ गिनते-गिनते छंदों के बंध टूटते हैं।
मैं इसीलिए तो कहता हूँ मेरे अनुभव से काम करो।
यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।
- गोपालप्रसाद व्यास
11 comments:
My blog is not the Counselling Office where I imposed constraints on you! Feel free :-)
Inbound message not delivered - Re: [Mad-'n'-hurt makes you frust] 3/27/2006 11:13:37 PM
saale yeh sab kya mail kar raha hain mujhe..uff yeh behenchod log kitni gaali dete haini !!
bhaiya hamare yahan ka stud email server hain...koi bhi shabd english mein pakad leta hain..to angrezi mein gaali mat do..matrabhasha ka prayog karo !!
Kohli
Is this blog a fancy way of saying:
You all guys rest. I will handle all the work. - Madhur.
stupid kohli has asked all the right questions!!
u must answer them :-)
@Kohli: Yes darling, now I shall keep you posted about my miserable and fucked up life. Happy holi to you too - maine kuch nahi kiya holi pe :( Yahan to 8 April ko celebration hai.
No salsa lessons yet lekin gym class join kar rakhi hai. Pichle sem karate bhi ki thi lekin utna time nahi nikal paaya :P Yahan lagaataar baarish chal rahi hai to no jogging since a long time - just gym mein ek jhantoo si treadmill pe daudta hoon.
@nileshbansal: The title of the post gives my feelings while taking a break from work . The content is here more because of its beauty rather than the (apparent) message :) The way he says such a nice poem in such a casual tone and about a casual subject is quite interesting to me.
@chetan: I did!
ah...madhur speaks and it's mujik !!
par bhabhs ki baat to tum taal gaye-wotsay chedi ?!!
Kohli
27th March.. guess I am not too late to the party. Kaise ho?
@Abhaya: Accha hoon :) Congrats for the CMU schol - final on it? Kab aane ka plan hai US?
hi madhur.. kaisa hai?.. kya hua? what made u leave orkut?
@nirupam: mast hoon :-) left orkut simply I got too tired of it!
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