Monday, June 02, 2008

एक और

हवा में नाचते बगीचे में
कहीं एक फूल टूट कर गिर गया।
टहनियों ने शायद कुछ देर निहारा होगा,
कहा होगा बेचारा अधखिला ही रह गया।
फिर वापस हवा से बातें करने लगीं होंगी,
भूल कर उसे जो अब बोल नहीं सकता।
बाग़ में हर ओर कई फूल सजे हैं।
रंगों की इस भीड़ के बीच कहीं,
एक और सुगंध, एक और उमंग,
खिलने से पहले ही घुट कर दम तोड़ गई।

3 comments:

abcd said...
This comment has been removed by the author.
Xameer said...

refreshing

KT said...

:) In panktiyon ne mujhe meri ek kavita yaad dila di... :)
http://shapingupsomesprinkledthoughts.blogspot.in/2010/08/this-is-me-very-me.html