Friday, April 28, 2006

आग की भीख

A great poem by Ramdhari Singh Dinkar and one of my favourites (out of the few that I have read). If you care to read this blog, chances are that I know you and in that case it is quite probable that I have shown you this poem already - but felt like posting about it anyway!

A friend, Sushobhan Avasthi, first showed me this poem about four years ago. Since then I have read this one may times and many others by Dinkar too. Talking about his style, a friend once commented - "It seems he even thinks in musical way!" Indeed, most of Dinkar's poetry has a strong musical quality to it. Another quality which contributes to the "flow" is a very clear-cut division of ideas into small "units" which somehow feel like beads on a string. This is best illustrated by contrasting the following excerpts from Dinkar and Dharmveer Bharti -

घास उड़ना चाहती है
और अकुलाती है,
मगर उसकी जड़ें धरती में
बेतरह गड़ी हुईं हैं।
इसलिए हवा के साथ
वह उड़ नहीं पाती है।

- दिनकर (कुंजी)

...... क्योंकि सपना है अभी भी -
इसलिए तलवार टूटे, अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशायें,
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध-धूमिल,
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
...... क्योंकि है सपना अभी भी!

- धर्मवीर भारती (क्योंकि)

For the curious, wikipedia has a small article on Dinkar here. For more of his poems, see this excellent collection by Jaya Jha . And finally, here's the poem I've been talking about...

आग की भीख

धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा,
कुचली हुई
शिखा से आने लगा धुआँसा।
कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है,
मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है?
दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे,
बुझती हुई
शिखा को संजीवनी पिला दे।
प्यारे स्वदेश के हित अँगार माँगता हूँ।
चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ।

बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है,
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है?
मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा?
आकाश पर
अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा,
भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा।
तमवेधिनी किरण का
संधान माँगता हूँ।
ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ।

आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है,
बलपुंज
केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है,
अग्निस्फुलिंग
रज का, बुझ डेर हो रहा है,
है रो रही जवानी, अँधेर हो रहा है!
निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है,
निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है।
पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ।
जड़ताविनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ।

मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही है,
अरमानआरज़ू की लाशें निकल रही हैं।
भीगीखुशी पलों में रातें गुज़ारते हैं,
सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं,
इनके लिये कहीं से निर्भीक तेज ला दे,
पिघले हुए
अनल का इनको अमृत पिला दे।
उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ।
विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ।

आँसूभरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे,
मेरे शमशान में आ
श्रंगी जरा बजा दे।
फिर एक तीर सीनों के आरपार कर दे,
हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे।
आमर्ष को जगाने वाली शिखा नयी दे,
अनुभूतियाँ हृदय में दाता,
अनलमयी दे।
विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ।
बेचैन ज़िन्दगी का मैं प्यार माँगता हूँ।

ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे,
जो राह हो हमारी उसपर दिया जला दे।
गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे,
इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे।
हम दे चुके लहु हैं, तू देवता
विभा दे,
अपने
अनलविशिख से आकाश जगमगा दे।
प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ।
तेरी दया विपद् में भगवान माँगता हूँ।

- दिनकर

Saturday, April 22, 2006

G-Drive

Side effects of prolonged boredom a.k.a. computer architecture:

बेवजह देखता तू आसमॉं को क्यों खड़ा है?
सुबह हो जाए कल शायद, पर अॅंधेरा भी क्या बुरा है!

दिये मैं लौ अगर है बाकी तो अभी रात कहॉ,
जो मज़ा चलने में है, रुक जाने में वो बात कहॉं!

Sunday, April 09, 2006

Holi hai!!

I know it's a little late to say that. But this refers to the Holi celebration at UC Berkeley today organized by the Indian Students' Association. The celebrations were postponed to today due to frequent rains in the past few weeks.

Feeling the effects of old age in grad life, devoid of company (I wish more C-BOT people were here) but still curious, I dragged my poor room-mate along to at least watch the event and take a few pictures. Though we didn't actually play, I managed a few snaps as people posed quite readily. My first attempt at photographing strangers was not so disastrous! :-)

Holi was being played with loud Hindi music and almost an equal amount of color and water as in India (i.e. if you did use color to play). Fooled around, clicked random shots and finally met with an interesting chap (last photo) who explained to us some connections between the Indian and Greek mythologies. Finally back home to a cup of homemade espresso - Mmm..!